शहर छोड़ मेरे घर की ओर कयामत की रात चल पड़ी।
दिल टूटा है शायद मेरा, जमानें में ये बात चल पड़ी ।।
अभी कल रात के आँसूओं से पलके सूखीं ही नहीं ,
कि सुबह होते ही फिर यादों की बारात चल पड़ीं।
उनसे ज्यादा वफ़ा तो उनकी यादों में है,
मैं जहाँ भी गया मेरे साथ चल पड़ीं।
अपनी वफ़ाओं का सबूत मैं कैसे दूँ किसीको,
बेवफ़ाई किसने की होगी ये सवालात चल पड़ी।
कहते हैं मोहब्बत को बीमारी लाइलाज,
मरीज-ए-इश्क हूँ मैं भी कुछ ऐसी बात चल पड़ी।
मेरे दिल के आशियानें को खुशी से जलाया था उसने,
ऐ काश मैं भी मिट जाऊँ ये फ़रियाद चल पड़ी।
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