Sir ji |
खुदा ने तुझसे मेरा कैसा नता जोड़ा है
याद मुझे तू आता रोज थोड़ा थोड़ा है
जिन रास्तों पर हम चले थे हाथों में लेकर हाथ
उन गलियों से रुख अपना तुमने मोड़ा है
रात की घाटियों में अश्कों की बाढ़ उमड़ आयी
तेरी यादों ने इन आंखों को कुछ ऐसे निचोड़ा है
जो खफा हुए तुम हमसे तो अब ये आलम है
कि खुशियों ने भी मुझसे अपना नाता तोड़ा है
है घड़ी ये आखिरी मेरे लिए अब तो मिलने को आजा
कि धड़कनों का अब तो सांसों ने भी साथ छोड़ा है
भूल गए तुम मुझको अब याद नहीं मैं आता
फ़िर क्यों रातों को रोता है तुझे कैसी पीड़ा है
याद मुझे तू आता रोज थोड़ा थोड़ा है
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