Shayrane sir ji |
उठ रहें है मेरे हाथ क्यों,आज तुझपे लिखने को
बेचैन हूं मैं आज फिर,तुझसे मिलने को
महसूस कर लेता था मैं,तेरे कदमों की आहट को
आंखों में बसाए बैठा हूं,तेरी मुस्कुराहट को
तड़प रही ये गालियां मेरी,छनक तेरे पायल की सुनने को
बेचैन हूं मैं आज फिर,तुझसे मिलने को
जग ने मुझसे वो सब छीना,मुझे जो भी था प्यारा
माना ये जग तो गैर ही है,किया तूने क्यों पराया
राज़ी है फिर भी आज ये दिल ,तुझे प्यार करने को
बेचैन हूं मैं आज फिर,तुझसे मिलने को
हर साम तन्हाई में जब,तेरी याद आती है
आंखें मेरी तेरी याद में,क्यों डबडबाती हैं
मरना होगा मुझको अब तुझसे,अगले जनम में मिलने को
बेचैन हूं मैं आज फिर,तुझसे मिलने को
Shayrane sir ji
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