Shayrane Sir ji |
हर रोज निकाला जाता हूं
ना जाने फिर कैसे आ जाता हूं
कुछ के लिए तो पूरा हूं मैं
वहीं कुछ के लिए अधूरा हूं मैं
कौन सुनेगा किसको सुनाऊं
आखिरकार तो कूड़ा हूं मैं
आखिरकार तो कूड़ा हूं मैं
दो वक्त की रोटी के लिए
कुछ लोग मुझे अपनाते हैं
कुछ मुझको दूर भगाने के
कई हथकंडे अपनाते हैं
सबकी आंखों को चुभता हूं मैं
फिर भी न किसी से अछूता हूं मैं
क्या फायदा कुछ भी कह लूं
आखिरकार तो कूड़ा हूं मैं
आखिरकार तो कूड़ा हूं मैं
जब तक मैं चमकता रहता हूं
सब मुझको संजो कर रखते हैं
जब काम निकल जाता है तो
वो मुझको कूड़ा कहते हैं
ये सोचकर कि कौन हूं मैं
सब जान कर भी मौन हूं मैं
कहना चाहूं भी तो क्या कहूं
आखिरकार तो कूड़ा हूं मैं
कुछ रचनात्मक विचारों से
मेरा तिनका तिनका निखर गया
कुछ क्रूर गरम मिजाजों के
हाथों में आकर बिखर गया
हर इंसान से जुड़ा हूं मैं
फिर भी न किसी को भाता हूं मैं
इससे ज्यादा और कहूं मै क्या
आखिरकार तो कूड़ा हूं मैं
आखिरकार तो कूड़ा हूं मैं
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