Sir ji |
बस कर अब और नहीं तू ले जा अपनी यादों को
बाद तेरे मैंने जो किये तन्हाई में उन फरियादों को
बस कर अब और नहीं तू ले जा अपनी यादों को
वो रूत सुहानी बीत गई जब से तू मुझसे रूठ गई
अंधेरों ने ऐसा घेरा कि चांदनी भी चुभती रातों को
बस कर अब और नहीं तू ले जा अपनी यादों को
तेरे जख्मों को सहता रहा आंखों के ज़रिए बहता रहा
वश में अपने मैं खुद ही नहीं कैसे रोकूं इन आंखों को
बस कर अब और नहीं तू ले जा अपनी यादों को
तुमने ही कहा था पास रहेंगे हम एक दूजे के साथ रहेंगे
जो कसमें हमने खाई थी कैसे भूलूं उन वादों को
बस कर अब और नहीं तू ले जा अपनी यादों को
0 comments:
Post a Comment